चांदी के व्यापार में चांदी ही चांदी!
आनेवाले कुछ समय में १ लाख तक पहुंच सकती है चांदी
ज्यादातर पढ़े लिखे लोग चांदी को सिल्वर कहने लग गए हैं, हम भी इन पन्नों पर चांदी को लगातार सिल्वर ही लिखते रहे हैं, लेकिन अब भी देश भर में तो सामान्य तौर पर चांदी ही कहा जाता है। तो, कहना यही है कि चांदी सामान्यतया प्राचीन काल से ही एक समृद्ध इतिहास वाली कीमती धातु है, अब 75 हजार का आंकड़ा छूने जा रही है और कभी भी इसको पार करते हुए तेजी से आगे बढ सकती है। जिसने मानव सभ्यता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसका उपयोग ज्वेलरी, मुद्रा और औद्योगिक प्रयोगों सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है। हाल के वर्षों में, चांदी के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है और यह कई निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण निवेश विकल्प बन गया है। भारत, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और कीमती धातुओं के प्रति आकर्षण के लिए जाना जाता है, हमारा देश चांदी के कारोबार में भी एक प्रमुख खिलाड़ी रहा है। इस लेख में, हम भारत में चांदी के कारोबार के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में चांदी के बाजार की गतिशीलता पर बातचीत करेंगे, तथा किस तरह से चांदी लगातार महंगी होती जा रही है तथा यह कैसे 1 लाख रुपए प्रति किलो तक पहुंचने वाली है, इस पर भी चर्चा करेंगे। भारत सरकार चांदी की ज्वेलरी की शुद्धता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उनकी हॉलमार्किंग को भी नियंत्रित करने की कोशिश में है, जो ज्वेलरी के निर्माण और रिटेल बिक्री को प्रभावित कर सकता है। इसके अतिरिक्त, भारत में चांदी पर लगाई गई जीएसटी का चांदी उत्पादों की कुल लागत पर प्रभाव पड़ रहा है। चांदी के मामले में अंतरराष्ट्रीय बाजार इसकी आपूर्ति और मांग की गतिशीलता, राजनीतिक घटनाओं, आर्थिक स्थितियों और निवेशक सहित विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है। चांदी मुख्य रूप से तांबे, सीसे और जस्ते जैसी अन्य धातुओं के उप-उत्पाद के रूप में खनन की जाती है। इसका अर्थ है कि चांदी का उत्पादन इन आधार धातुओं के खनन पर निर्भर है। नतीजतन, मूल धातुओं की मांग में उतार-चढ़ाव चांदी की आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है, जो बदले में अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत को प्रभावित करता है। वर्तमान में चांदी के रेट्स 75 हजार के आसपास चल रहे हैं, जो अप्रेल के तीसरे सप्ताह के हैं। लेकिन आने वाले दो सालों में ये 1 लाख तक पहुंच सकते हैं, ऐसा माना जा रहा है। इसकी खास वजह है कि चांदी की मांग ज्वेलरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, सौर पैनल, फोटोग्राफी, 5जी और निवेश सहित विभिन्न क्षेत्रों से आती है। ज्वेलरी उद्योग चांदी की मांग के एक महत्वपूर्ण हिस्से के लिए जाना जाता है, हमारी कई सांस्कृतिक परंपराएं चांदी के आभूषणों को एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रतीक और कीमती निवेश के रूप में मानती हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग भी चांदी की पर्याप्त मात्रा में खपत करता है, क्योंकि इसकी उच्च तापीय और विद्युत चालकता के कारण इसका उपयोग विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक घटकों में किया जाता है। चांदी का उपयोग सौर पैनलों के उत्पादन में भी किया जाता है, क्योंकि यह बिजली का एक उत्कृष्ट संवाहक है और इसमें उच्च परावर्तकता होती है, जो इसे सौर ऊर्जा का उपयोग करने के लिए आदर्श बनाती है। इसीलिए मुंबई के बुलियन बाजार में चांदी की खपत लगातार बढ़ती जा रही है। हाल के वर्षों में चांदी के लिए निवेश की मांग बढ़ रही है, कई निवेशक इसे गोल्ड की तरह ही मुद्रास्फीति, मुद्रा अवमूल्यन और आर्थिक अनिश्चितता के खिलाफ बचाव के रूप में मानते हैं। चांदी, जिसे अक्सर गरीब का गोल्ड कहा जाता है, जो कि गोल्ड की तुलना में अधिक सस्ती मानी जाती है, जिससे यह निवेशकों की एक बड़ी संख्या के लिए सुलभ हो जाती है। एक निवेश विकल्प के रूप में चांदी में बढ़ती रुचि ने विभिन्न निवेश उत्पादों, जैसे कि चांदी के बार, सिक्के और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) के विकास को बढ़ावा दिया है, जो निवेशकों को चांदी के बाजार में कमाई प्रदान करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय चांदी बाजार में तोजी के मामले में राजनीतिक घटनाएं और आर्थिक स्थितियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। वर्तमान में चांदी के भान लगातार बढ़ते जा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापारिक संबंध, सरकारी नीतियों में बदलाव और वैश्विक आर्थिक विकास जैसे मानक चांदी की मांग और इसकी कीमत को प्रभावित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, आर्थिक अनिश्चितता या राजनीतिक उथल- पुथल की अवधि के दौरान, निवेशक गोल्ड की तरह ही चांदी जैसी कीमती धातुओं में एक सुरक्षित-संपत्ति के रूप में शरण लेते हैं, जिससे मांग में वृद्धि और कीमतों में वृद्धि हो रही है। पिछले कुछ समय से चांदी की कीमतों में लगातार होती जा रही बढ़ोतरी के कारण भी यही है। भारत में चांदी के कारोबार का बहुत पुराना इतिहास है। हमारे देश में चांदी का कारोबार एक महत्वपूर्ण उद्योग है जिसमें विनिर्माण, व्यापार, खुदरा बिक्री और निवेश सहित विभिन्न खंड शामिल हैं। चांदी सहित कीमती धातुओं के प्रति भारत का सांस्कृतिक संबंध लंबे समय से है। देश में ज्वेलरी, बर्तन और सिक्कों जैसे विभिन्न रूपों में चांदी के उपयोग का समृद्ध इतिहास रहा है। चांदी को भारतीय संस्कृति में एक शुभ धातु भी माना जाता है और अक्सर इसका उपयोग धार्मिक समारोहों और त्योहारों में किया जाता है। इसी कारण भारत के घर घर में चांदी के गहने हमें मिलते है, क्योंकि गोल्ड की तरह ही यह भी एक बेहद जरूरी सामाजिक परंपरा की जरूरी धातु मानी जाती है। चांदी की ज्वेलरी भारत में चांदी की मांग के प्राथमिक कारणों में से एक है। चांदी के आभूषण देश के कई हिस्सों में लोकप्रिय हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहां इसे अक्सर धन, स्थिति और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में पहना जाता है। चांदी के आभूषणों का उपयोग आमतौर पर पारंपरिक भारतीय शादियों और त्योहारों में भी किया जाता है, जिसमें परिवार अक्सर पीढिय़ों के माध्यम से चांदी के आभूषणों का इस्तेमाल करते हैं। भारत में चांदी की खुदरा बिक्री मुख्य रूप से पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह के ज्वेलरी शोरूम्स व बुलियन व्यापारियों के माध्यम से की जाती है, जो उपभोक्ताओं की चांदी तथा चांदी के आभूषणों की मांग को पूरा करते हैं।
भारत में कई ज्वेलरी स्टोर विभिन्न क्षेत्रों, अवसरों और मूल्य बिंदुओं के लिए चांदी की ज्वेलरी के डिजाइन की एक विस्तृत श्रृंखला पेश करते हैं। भारत में चांदी के कारोबार के महत्वपूर्ण होने के बावजूद, उद्योग के सामने चुनौतियां और कई बड़े सवाल भी हैं। इनमें चांदी की कीमतों में उतार- चढ़ाव, उपभोक्ताओं की बदलती पसंद, बढ़ती प्रतिस्पर्धा, बढ़ती श्रम लागत और नकली उत्पादों के खतरे शामिल हैं। हालांकि, चांदी के कारोबार में बड़े खिलाडिय़ों के प्रतिस्पर्धी बने रहने और उपभोक्ताओं और निवेशकों की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए, इसकी ज्वेलरी के डिजाइन, क्वालिटी और ग्राहकों को हर तरह सं संतुष्ट करने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, बदलती बाजार की गतिशीलता के बीच लगातार बढ़ते इसके भाव चांदी को हमारे जीवन में लगातार महत्वपूर्ण बना रहे हैं, उसी कारण आने वाले वक्त जब इसके रेट 1 लाख रुपए किलो तक पहुंचेंगे, तो भी चांदी के कारोबार में चांदी ही चांदी है।
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